प्रयागराज के इस मंदिर में पूरी होती संतान प्राप्ति की इच्छा, श्रीराम के जन्म से जुड़ा है इसका इतिहास
भारत देश में कई फेमस और प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा है, जिनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने का नियम है। वहीं कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जो अपने आप स्थापित हैं और कई मंदिरों का निर्माण कराया गया है। इन मंदिरों को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। इन्हीं में से एक मंदिर श्रृंगवेरपुर धाम है। कहा जाता है कि इस मंदिर में निसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं।
श्रृंगवेरपुर धाम
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में श्रृंगवेरपुर धाम है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर सिंगरौर नामक कछार में स्थित है। बताया जाता है कि इस जगह का संबंध श्रीराम के जन्म और वनवास काल से जुड़ा है। साथ ही यहां पर निषादराज गुहा का स्थान है, जिसने वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई थी। यह एक फेमस तीर्थ स्थल है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के अलावा निषादराज गुह व देवी शांता की प्रतिमा है।
श्रृंगवेरपुर धाम का भगवान राम से संबंध
भगवान राम से जन्म से इस मंदिर का गहरा नाता है। श्रृंगवेरपुर में श्रृंगी ऋषि का आश्रम हुआ करता था। वहीं अयोध्या के महाराज दशरथ के तीनों रानियों के कोई संतान नहीं थी। तब महाराज दशरथ ने श्रृंगी ऋषि के कहने पर संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ में खीर बनवाई गई। जिसे उनकी तीनों रानियों कौशल्या, सुमित्रा और कैकेई ने प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। जिसके बाद महाराज दशरथ को श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में चार पुत्र प्राप्त हुए।
मंदिर का श्रीराम के वनवास से संबंध
पौराणिक कथा के मुताबिक जब श्रीराम, मां सीता और लक्ष्मण वनवास जा रहे थे। तब वह तीनों श्रृंगवेरपुर पहुंचे। यहां से उनको गंगा नदी के पार जाना था, लेकिन उस समय नदी में बाढ़ आई थी, जिस कारण नाव चलाना मुश्किल था। वहां पर एक गुहा नामक निषाद राज रहता था। वह लोगों को नदी पार करवाने का काम करता था।
जब श्रीराम ने गुहा से उनको नदी पार करवाने का आग्रह किया तो उसने इंकार कर दिया। गुहा का कहना था कि बाढ़ के चलते नाव चलाना मुश्किल है। हालांकि गुहा के मन में डर था कि कहीं नाव पर श्रीराम के पैर पड़ते उसकी नाव स्त्री न बन जाए। क्योंकि इससे पहले श्रीराम ने पत्थर की शिला बनी अहिल्या का उद्धार किया था।
नदी पार कराने और नाव में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को चढ़ाने के लिए निषादराज ने एक शर्त रखी। गुहा ने कहा कि जब श्रीराम उसको अपने चरण धोने की अनुमति देंगे। जिसके बाद निषादराज ने श्रीराम के चरण धोकर उस जल को पी लिया। फिर गुहा ने श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता को गंगा नदी पार करवाई।
पूरी होती है संतान सुख की कामना
मान्यता के अनुसार, जो भी जातक इस मंदिर में संतान प्राप्ति की इच्छा से आते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। बताया जाता है कि अयोध्या के महाराज दशरथ ने भी इसी मंदिर में पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया था।