हर सोमवार को करें श्री शिवरामाष्टकस्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगी महादेव की कृपा
भगवान शिव को जगत का संहारक माना जाता है। लेकिन भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है, क्योंकि इनकी पूजा में अधिक भक्तों को अधिक विधि-विधान की जरूरत नहीं होती है। भगवान शिव सिर्फ एक लोटा जल अर्पित करने से ही अपने भक्तों से प्रसन्न हो जाते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए भक्त सोमवार के दिन विधि-विधान से महादेव की पूजा करते हैं।
बता दें कि भगवान शंकर के आराध्य जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। वहीं भगवान विष्णु के मानव अवतार श्रीराम हैं। इसलिए भगवान शिव को श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् अति प्रिय हैं। मान्यता के अनुसार, जो भी जातक हर सोमवार को श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् का पाठ करता है, उसको भगवान शिव की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् के पाठ से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे जीवन में सुख-शांति व समृद्धि मिलती है। ऐसा जातक हर दुख और संकट से मुक्ति पाता है। इसके साथ ही व्यक्ति को दैविक, भौतिक और दैहिक तापों से मुक्त हो जाता है।
श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम्
शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।
अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥1॥
कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते।
शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥2॥
स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्।
भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम्॥3॥
जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे।
जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥4॥
भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते।
जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥5॥
अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते।
निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥6॥
पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते।
तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥7॥
अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्।
मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥8॥
हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो।
मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥9॥
नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्।
विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥10॥
प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः।
विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात्॥11॥
॥ इति श्रीरामानन्दस्वामिना विरचितं श्रीशिवरामाष्टकं सम्पूर्णम् ॥