Gyan Ganga: भगवान शंकर के विवाह प्रसंग का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत सुंदर ढंग से किया है
हिमाचल वासियों ने अत्यंत सुंदर श्रृंगार कर स्वयं को भोले बाबा की बरात के लिए सज किया था। भोले बाबा की बरात अब मानो हिमवान के द्वार पर ही थी। किंतु इस बरात में एक और विचित्र बात यह थी कि इसमें दूल्हा बरात के आगे नहीं था। जैसा कि सब बरातों में दूल्हा ही बरात की अगुवाई करता है। क्योंकि बरात मंडली में, वही अग्रणी व सर्वश्रेष्ठ होता है। किंतु भोलेनाथ ऐसे अग्रणी हैं, कि वे आज स्वयं को पीछे रखकर चल रहे हैं। उन्हें है ही नहीं, कि वे किसी को पीछे करके स्वयं आगे चलें। हमारे मायावी जगत में लोगों की वृति देखें तो भगवान् शंकर से सर्वदा भिन्न है। हम दूल्हा हैं तो कन्या पक्ष वाले हमारी ऐसी आव-भक्त करते हैं, कि मानो हम दूल्हा न होकर स्वयं साक्षात भगवान् हों। दूल्हे की सेवा में कहीं कोई त्रुटि रह जाए, तो दूल्हा एवं उसके पक्ष के लोग ऐसे क्रोधित हो जाते हैं, मानो पता नहीं उसका क्या छिन गया हो।
उधर हिमाचल वासी जब बरात का स्वागत करने के लिए आगे आए, तो सभी प्रसन्नता से गदगद हो गए। क्योंकि बरात के आरंभ में भगवान विष्णु सबके अग्रणी बनकर प्रस्तुत हुए। भगवान् विष्णु का सौन्दर्य व तेज ऐसा था कि पूरी हिमाचल नगरी की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही-‘अरे दूल्हा कितना सुंदर है। इतनी आभा व शोभा जिसका कोई आदि, अंत प्रतीत ही नहीं हो रहा। भला हो देवर्षि नारद जी का, जिन्होंने हमारी पार्वती के लिए, ऐसे सुंदर वर का चयन किया।
भगवान् विष्णु जी ने जब हिमाचल की इन सुंदर स्त्रियों के यह शब्द सुने तो वे मन ही मन मुस्कुराने लगे। और कहने लगे कि दूल्हे की सुंदरता तो इतनी है कि आप बस देखते के देखते ही रह जाओगे। हम वास्तव में दूल्हे नहीं हैं केवल बराती हैं। दूल्हे महाराज तो अभी पीछे आ रहे हैं।
हिमाचली कन्याओं को यह देखकर और भी चाव चढ़ गया कि जब बराती इतने सुंदर हैं, तो दूल्हा कितना सुंदर होगा। इसी उमंग में सबने भगवान विष्णु जी का बहुत अच्छे से सत्कार किया। और श्रेष्ठ जन उन्हें महल के भीतर लिवा ले गए। उसके पश्चात् जो दल अगवानी के लिए पहुँचा उसके प्रमुख ब्रह्मा जी थे। वे भले ही वृद्ध थे, किन्तु उनकी दिव्यता भी कहीं पर कम न थी। वे मानो तेरहवें रत्न की भांति मूल्यवान व दुर्लभ प्रतीत हो रहे थे। सबने उनकी आयु देखकर एक दूसरे से कहा, कि यह श्रीमान दूल्हे तो प्रतीत नहीं हो रहे। किन्तु दूल्हा कितना सुंदर होगा इसकी पुष्टि अवश्य हो गई थी। हिम कन्याओं ने उनके सम्मान में भी कोई कमी नहीं छोड़ी और उन्हें पुष्प वर्षा करते हुए भीतरी कक्ष में ले गए।
जाते-जाते ब्रह्मा जी भी सोच रहे थे कि अब जिनके दर्शन इन्हें होने जा रहे हैं। क्या ये उनके दर्शन का करने का साहस कर पाएंगे? क्योंकि दूल्हे की जैसी कल्पना ये लोग कर रहे हैं,दूल्हा तो उससे पूर्णता विपरीत है। चलो अब क्या करें जो होगा हिमाचल वासी स्वयं ही देख लेंगे।
अब बारी थी भगवान शंकर जी के समूह की। और जैसे ही भगवान शंकर को उनके भयानक दल सहित हिमाचल वासियों ने देखा, तो सबका कलेजा मुँह को आ गया। बच्चो की तो छोड़िए बड़ों-बड़ों की चीखें निकल गईं। क्योंकि भगवान शंकर का भयक्रांत रुप देखकर मानो सबकी रूह कांप गई। किसी ने इस दृष्य की तो स्वपन में भी कल्पना नहीं की थी। भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ उनके गणों ने भी सारी सीमाएं तोड़ दीं। वे तो इस शुभ घड़ी पर भी खोपड़ियों में रक्त भर-भर कर पी रहे थे। उन्हें कोई वास्ता था कि कन्याएं उनके समक्ष कोई मंगल गीत इत्यादि भी गा रही हैं। उन्हें तो समस्त स्तुतियां व मंगल गान व्यर्थ की ध्वनियां ही प्रतीत हो रहे थे। उल्टा वे तो निरंतर भांति-भांति की भयंकर डरावनी आवाजें निकाल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि इस डरावने दल को देखकर, तो सूर्य ने भी अपना चेहरा ढंक लिया है। भगवान् शंकर भी मन ही मन सोचने लगे कि कमाल है, हमें पाने के लिए जिसने इतनी प्रगाढ़ तपस्या की, अनेकों परीक्षाएं से गुजरी, वह तो भीतर से कुछ नहीं बोली होंगी। और इन स्वागत कर्ताओं ने व्यर्थ का ही ऊधम मचा लिया हो।
कमाल की बात है, जीव एक तरफ तो प्रार्थनाएं करता है रहता है कि हे, प्रभु आप हमारे पास कब आएंगे, कब हमें अपने दर्शन देंगे? और आज हम इन सभी को दर्शन देकर, कृपा करने आए हैं तो सब भाग खड़े हुए। जब इनके जीवन की दौड़ रुकने वाली थी। इन्होंने उसी समय अपनी दौड़ शुरू कर दी। अब बताओ इनका कल्याण कैसे होगा? मैं यहाँ अकेला नहीं अपितु इतने ताम-झाम के साथ पहुँचा हूँ, लेकिन तब भी मुझे स्वीकार नहीं कर पाए? बताइए, जो जीव भगवान् से ही डर जाए उसे भला कहाँ चैन मिलेगा? (—क्रमशः)